9/17/11

दिलकश शायरीयाँ

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एक रंगीन झिझक एक सादा पयाम
कैसे भूलूं किसी का वो पहला सलाम
- कैफी आजमी



अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएंगे
- जौक




मैं चाहता भी यही था वो बेवफा निकले
उसे समझने का कोई तो सिलसिला निकले
- वसीम बरेलवी


मेरी आंखें और दीदार आप का
या कयामत आ गई या ख्वाब है
- आसी गाजीपुरी



अपने चेहरे से जो जाहिर है छुपाएं कैसे
तेरी मर्जी के मुताबिक नजर आएं कैसे
- वसीम बरेलवी


दुश्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले
हम अपने बुजुर्गों का जमाना नहीं भूले
- सागर आजमी



कांटों से गुजर जाना, शोलों से निकल जाना
फूलों की बस्ती में जाना तो संभल जाना
- सागर आजमी



अब क्या बताऊं मैं तेरे मिलने से क्या मिला
इरफान-ए-गम हुआ मुझे दिल का पता मिला
- सीमाब अकबराबादी



साफ जाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं
मुंह से कहते हुये ये बात मगर डरते हैं
- अख्तर अंसारी


एक टूटी हुई जंजीर की फरियाद हैं हम
और दुनिया ये समझती है कि आजाद हैं हम
- मेराज फैजाबादी




सितम हवा का अगर तेरे तन को रास नहीं
कहां से लाऊं वो झोंका जो मेरे पास नहीं
- वजीर आगा




उम्र जलवों में बसर हो ये जरूरी तो नहीं
हर शब-ए-गम की सहर हो ये जरूरी तो नहीं
- खामोश देहलवी





कल गए थे तुम जिसे बीमार-ए-हिजरां छोड़कर
चल बसा वो आज सब हस्ती का सामां छोड़कर
- इब्राहीम जौक



न मेरे जख्म खिले हैं न तेरा रंग-ए-हिना
मौसम आए ही नहीं अब के गुलाबों वाले
- अहमद फराज


बदलते वक्त का इक सिलसिला सा लगता है
कि जब भी देखो उसे दूसरा सा लगता है
- मंजर भोपाली



काम आ सकीं न अपनी वफायें तो क्या करें
इक बेवफा को भूल न जायें तो क्या करें
- अख्तर शीरानी




नींद इस सोच से टूटी अक्सर
किस तरह कटती हैं रातें उसकी
- परवीन शाकिर




अक्ल पे हम को नाज बहुत था लेकिन ये कब सोचा था
इश्क के हाथों ये भी होगा लोग हमें समझायेंगे
- अहमद हमदानी


क्यूंकर हुआ है फाश जमाने पे क्या कहें
वो राज-ए-दिल जो कह न सके राजदां से हम
-मजाज लखनवी



इस तरह सताया है, परेशान किया है
गोया कि मुहब्बत नहीं एहसान किया है
- अफजल फिरदौस



कैसे कह दूं कि मुलाकात नहीं होती है
रोज मिलते हैं मगर बात नहीं होती है
- शकील बदायूंनी


हम रातों को उठ-उठ के जिनके लिए रोते हैं
वो गैर की बाहों में आराम से सोते हैं
- हसरत जयपुरी


इस से पहले कि बेवफा हो जायें
क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जायें
- अहमद फराज


हम बा-वफा थे इसलिए नजरों से गिर गये
शायद तुम्हें तलाश किसी बेवफा की थी
- अज्ञात



तुम नहीं पास कोई पास नहीं
अब मुझे जिन्दगी की आस नहीं
- जिगर बरेलवी



समझते क्या थे मगर सुनते थे फसानाए-दर्द
समझ में आने लगा जब तो फिर सुना न गया
-यग़ाना




गरज कि काट दिए जिन्दगी के दिन ऐ दोस्त
वो तेरी याद में हो या तुझे भुलाने में
- फिराक गोरखपुरी



इन्सान अपने आप में मजबूर है बहुत
कोई नहीं है बेवफा अफसोस मत करो
- बशीर बद्र


एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्जाम नहीं
दुनियावाले, दिलवालों को और बहुत कुछ कहते हैं
- हबीब जालब



यूं इस कदर हवा नहीं चलती
उसे तो सिर्फ हमारा दिया बुझाना था
- प्रफुल्ल चंद्र पाठक




सितारों के आगे जहां और भी हैं
अभी इश्क के इम्तेहां और भी हैं
- इकबाल




ऐ इश्क तूने अक्सर कौमों को खा के छोड़ा
जिस घर से सर उठाया उसको बिठा के छोड़ा
- हाली



इश्क ने ''ग़ालिब'' निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के ।
- ग़ालिब








कभी खुशी से खुशी की तरफ नहीं देखा
तुम्हारे बाद किसी की तरफ नहीं देखा
- मुनव्वर राना








हमको तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया
रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया
- सैफुद्दीन सैफ





अय मौत, उन्हें भुलाए जमाने गुजर गए
आजा कि जहर खाए जमाने गुजर गए
- खुमार बाराबंकवी





 आज फिर किसीकी याद ने रुलाया हे मुजे
जाने दो यारो ! किसीके साज़ ने बुलाया हे मुजे

कैसे भूल जाऊं  उन जुल्फों को 'रजा' 
जिसने अपनी छावं में सुलाया हे मुजे.
-याकूब रजा ' छोटाउदेपुर' -

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